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मंगलवार, 28 फ़रवरी 2023

*ऑटोफैगी।* *उपवास: सनातन संस्कृति में भारतीय ऋषि-मुनियों का ज्ञान

 *ऑटोफैगी।*

*उपवास: सनातन संस्कृति में भारतीय ऋषि-मुनियों का ज्ञान।*


कभी सोचा आपने कि आधुनिक विज्ञान ने कैंसर का इलाज क्यों नहीं ढूँढा।


आप हैरान होंगे कि आधुनिकता के दुष्चक्र में फंस कर, इसके सहज सरल भारतीय पद्धति के इलाज को भी सामने ही नहीं आने देना चाहता।


डबल्यूएचओ कहता है कि विश्व में 9.6 मिल्यन लोग मरते हैं, एक साल में, इस बीमारी से 96 लाख लोग। 8 लाख लोग हर महीने मारे जाते हैं। 27 हज़ार प्रतिदिन ये दुनिया छोड़ देते हैं।


भारत में 14-15 लाख लोग प्रतिवर्ष इसके शिकार होते हैं। 1.16 लाख प्रतिमाह। 3 हज़ार 900 प्रतिदिन।


कुल मिला के भारत का इस कर्क रोग से मृत्यु में योगदान 8-9 प्रतिशत का है। बहुत बड़ी मार्केट है। वैसे अब लोग ठीक भी होने लगे हैं, पर पैसा बहुत लग जाता है।


जापान के “योशिनोरी ओसुमी” को मेडिसिन के क्षेत्र में 'नोबेल पुरस्कार' दिया गया था।


उनकी थेरेपी *ऑटोफैगी* (autophagy) के लिए, जो कैन्सर के लिए बहुत उपयोगी है। वैसे तो ऑटोफैगी बहुत पुरानी थेरेपी है। मगर इन्होंने सिद्ध किया होगा, तभी तो नोबेलप्राईज इन को मिल गया।


जबकि यह ज्ञान भारतीयों का था उपवास_भारतीय_ऋषि-मुनियों का ज्ञान।


*ऑटोफैगी का मतलब होता है:* ऑटो मतलब स्वयं को, फ़ैगी मतलब खाना। स्वयं को खाना या स्वयं को खा जाना।


इस ऑटोफैगी में ज़्यादा कुछ नहीं करना है, केवल उपवास करना है। "योशिनोरी ओसुमी" ने 72 घंटे का उपवास बताया था। मतलब 3 दिन। केवल पानी पीना है खाना भी कुछ नहीं। 


तो 'योशिनोरी ओसुमी' की *ऑटोफैगी थेरेपी* बहुत सी बीमारियों के आने से पहले का इलाज है। 

लेकिन दवाई मार्केट भी बहुत बड़ा है, इसलिए इसके बारे में कम ही बात होती है। फिर विवाद जोड़ा गया कि ये तो भारत में हज़ारों साल से होता आया है।


साप्ताहिक उपवास (सोमवार, मंगलवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार, रविवार), पाक्षिक (एकादशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा, अमावस्या), मासिक, विशेष पर्व (नवरात्रि) तीज, छठ इत्यादि का व्रत यही तो है।


कैन्सर के सेल सब के शरीर में होते हैं। फिर जब ये किसी कारणवश अनियंत्रित हो जाते हैं, तो बीमारी का रूप ले लेते हैं।


ऑटोफैगी के उपवास से हमारी स्वस्थ कोशिकाएं इन बीमार कोशिकाओं को खा जाती है, जिससे इस के फैलने की संभावना कम हो जाती हैं। बस इतना सा है ऑटोफैगी, इतनी सी बात के लिए नोबेल मिल गया।


पहले भारत में रविवार की छुट्टी जैसा कुछ नहीं था। यहाँ के स्त्री पुरुष स्वस्थ रहते थे. हफ़्ते के सातों दिन काम करते थे। मगर महीने की छः छुट्टियाँ मिलती थी। 


तीन पूर्णमासी को, तीन अमावस्या को। पूर्णमासी से एक दिन पहले, एक पूर्णमासी को, एक उससे अगले दिन। ऐसी ही प्रक्रिया अमावस्या को भी अपनायी जाती थी. ये तीन दिन छुट्टी मिलती थी, जिस में आप उपवास करो।


शरीर का विषहरण (detoxification) करो और स्वस्थ रहो। पृथ्वी में ज्वार-भाटा भी इन्हीं दिनो में आता है। कहा गया है “यत् ब्रह्माण्डे तत् पिण्डे” अर्थात जो ब्रह्माण्ड में है, वो ही शरीर में है। अब पृथ्वी के जल में ज्वार-भाटा आता है, तो शरीर के जल में भी आता है। इसलिए इन तीन दिनों में उपवास करने की बात कही गयी है। तीन दिन मतलब 72 घंटे, ऑटोफैगी।


चलिए छोड़िए। आप भी 24, 36 और 72 घंटे का उपवास करें. साल में एक दो बार. फिर अमेरिका, लंदन तो क्या, पड़ोस के डॉक्टर के पास जाने की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी। ध्यान रहे यदि 72 घंटे का नहीं कर सकते, तो 15 घंटे से शुरुआत करें, केवल पानी लें, अन्न नहीं।


इस भूलोक में हम केवल यात्री हैं. थोड़ी देर विश्राम करने के लिए यहां रुके हैं. यात्रा बहुत लम्बी है. ये भूलोक केवल एक धर्मशाला है, मंज़िल नहीं।


( *भोजन ही सभी बीमारियों की जड़ है और शुद्ध भोजन ही समस्त बीमारियों की दवा )*

 *ऑटोफैगी।*  *उपवास: सनातन संस्कृति में भारतीय ऋषि-मुनियों का ज्ञान
  • Title : *ऑटोफैगी।* *उपवास: सनातन संस्कृति में भारतीय ऋषि-मुनियों का ज्ञान
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  • Date : फ़रवरी 28, 2023
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