खालसा कॉलेज डुमेली ने ऐतिहासिक गाँव बबेली का शैक्षिक भ्रमण कराया।
माहिलपुर/दलजीत अजनोहा
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अंतर्गत संचालित शैक्षणिक संस्थान, संत बाबा दलीप सिंह मेमोरियल खालसा कॉलेज डुमेली के इतिहास विभाग ने ऐतिहासिक गाँव बबेली का शैक्षिक भ्रमण कराया। इस भ्रमण का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों को बबेली गाँव के ऐतिहासिक महत्व के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करना था। सबसे पहले विद्यार्थियों को गुरुद्वारा चौथा साहिब, जहाँ सातवें गुरु, श्री गुरु हर राय साहिब जी के चरण स्पर्श हुए थे, के दर्शन कराए गए। इतिहास विभागाध्यक्ष मैडम अमरपाल कौर ने विद्यार्थियों को जानकारी प्रदान करते हुए बताया कि यह वही धार्मिक स्थल है जहाँ गुरु हर राय साहिब जी ने 1655-56 में 2200 घुड़सवारों के साथ 90 दिनों तक प्रवास किया था। छात्रों को गुरुद्वारा चौथा साहिब के बहुत करीब एक जगह भी दिखाई गई जो 1920 में बिस्त दोआब में हुए बब्बर अकाली आंदोलन से जुड़ी है। 1923 में गाँव बबेली में चार बब्बरों और 2200 ब्रिटिश सैनिकों सहित पुलिस बल के बीच हुई झड़प 'बबेली की लड़ाई' के रूप में प्रसिद्ध है। ऐतिहासिक विवरण से पता चलता है कि बब्बर अकाली आंदोलन में सक्रिय बब्बर, 'बब्बर अकाली अखबार' के संपादक सरदार करम सिंह दौलतपुर, गाँव रामगढ़ झुगियां से सरदार उधे सिंह, गाँव डुमेली से सरदार बिशन सिंह मांगट और सरदार मोहिंदर सिंह पंडोरी गंगा सिंह ने एक सम्मेलन में भाग लिया और गाँव बबेली में बब्बर शिव सिंह के घर पर रुके। अनूप सिंह नामक व्यक्ति ने पुलिस को इन चार बब्बरों के बारे में सूचना दी। ब्रिटिश सरकार पहले से ही बब्बर अकाली आंदोलन से डरी हुई थी 01-09-1923 को हुए बबेली के युद्ध में चारों बब्बरों ने अद्वितीय वीरता व साहस के साथ गुरुद्वारा चौथा जी साहिब के निकट बहने वाली धारा में ब्रिटिश सेना का डटकर मुकाबला करते हुए अपनी जान जोखिम में डाल दी थी। स्थानीय लोगों का कहना है कि आज भी इस धारा को 'बब्बर की धारा' के नाम से जाना जाता है। लोगों से यह भी पता चला कि ब्रिटिश सरकार ने ग्रामीणों को इन चारों बब्बरों का अंतिम संस्कार करने से रोका था, लेकिन निकटवर्ती गांव भबियाना के सरदार साधु सिंह ने सरकारी आदेश की अवहेलना करते हुए इन बब्बरों का अंतिम संस्कार कर दिया। जिसके कारण सरदार साधु सिंह को ब्रिटिश सरकार की अवज्ञा करने के लिए सौ कोड़े मारे गए। विद्यार्थियों को बब्बरों की स्मृति को समर्पित गुरुद्वारा शहीद भी ले जाया गया, जहां विद्यार्थियों व स्टाफ ने ऐतिहासिक बबेली के युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस स्थान पर विद्यार्थियों व स्टाफ को बब्बरों के परिजनों से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ। इस शैक्षिक भ्रमण ने विद्यार्थियों को इस बात से प्रभावित किया कि गुरुद्वारा चौथा साहिब और बबेली के युद्ध जैसे ऐतिहासिक महत्व के स्थल आध्यात्मिक जड़ों को क्रांतिकारी संघर्ष से जोड़ते हैं। विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए सदैव तत्पर रहने वाले महाविद्यालय के प्रिंसिपल डॉ. गुरनाम सिंह रसूलपुर के प्रेरक नेतृत्व में आयोजित इस शैक्षिक भ्रमण ने विद्यार्थियों और अध्यापकों पर गहरी छाप छोड़ी और यह एक यादगार भ्रमण बन गया।
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