जब इन्सान के जीवन में पूर्ण गुरु का पर्दापण होता है उन्ही की कृपा द्वारा ही उस ज्ञान को जाना जा सकता है/स्वामी दिनकरानंद
होशियारपुर/दलजीत अजनोहा
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा स्थानीय आश्रम गौतम नगर में भंडारे का आयोजन किया गया जिसमें सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य स्वामी दिनकरानंद जी ने बताया कि जब एक साधक सत्य के पथ पर चलता है तो उसके जीवन में सबसे बड़ी रूकावट उसका मन होता है। इन्सान का मन सदैव गुरु के आदेशों के विपरीत चलता है। जैसे गुरु के द्वारा तो हमें यह शिक्षा मिलती है कि सुबह जल्दी उठकर प्रभु का चिन्तन करना है लेकिन यह मन तो उसे प्रभु भक्ति की बजाय संसार की माया में धकेलता है। जैसे सूई में डाला हुआ धागा वही जाएगा जहाँ सूई जाएगी, ठीक उसी प्रकार एक इन्सान का भी यही स्वभाव होता है वह वही जाता है जहाँ उसका मन और बुद्धि जाते हैं। इसलिए उसे अपने इस मन और बुद्धि को ही प्रभु में लगा देना चाहिए। जब उसका चिन्तन ही प्रभु भक्ति में लग गया फिर चाहे वह संसार की माया में रहे लेकिन मोहरूपी इस माया में रहते हुए भी वह करतार की प्रीति को कभी नहीं भूल पाएगा। उन्होंने बताया कि संसार में ऐसी कोई भी वस्तु नहीं जिसे प्राप्त नहीं किया सकता, बस आवश्यकता है केवल प्रयास और अभ्यास की। देखा जाए तो आज इन्सान संसारिक उपलब्धि पाने के लिए भी तो दिन-रात योजनाएँ बनाता है निरंतर अभ्यास करता है लेकिन प्रभु का चिन्तन जो उसके लिए सर्वोत्तम है उसे इन्सान ने मात्र एक औपचारिकता बनाकर रखा हुआ है। इसलिए आज इन्सान प्रभु के प्रेम प्रभु की भक्ति को पाने का भी अभ्यास करें और यह अभ्यास तभी संभव है जब उसके पास ब्रह्मज्ञान होगा। जब एक इन्सान के जीवन में पूर्ण गुरु का पर्दापण होता है उन्ही की कृपा के द्वारा ही उस ज्ञान को जाना जा सकता है।
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