विद्या मंदिर स्कूल के स्थापना दिवस पर आध्यात्मिक लेखक और सामाजिक चिंतक डॉ हर्षविन्दर सिंह पठानिया से मुलाकात:
होशियारपुर/दलजीत अजनोहा
डॉ हर्षविंदर ने बताया की उनके पिता जी आर्मी में थे इसलिए उनकी प्रारंभिक शिक्षा आर्मी स्कूल जम्मू में शुरू हुई ! बाद में पिता जी के रिटायर होने के बाद डी ए वी स्कूल होशियारपुर में पढ़ते हुए आप लंबे समय तक अपने ननिहाल में रहे और यहीं आपको अपने मामा श्री रत्न सिंह राजपूत के साथ लाइब्रेरी में जाकर पुस्तके पढ़ने का शौक लगा और यहीं से शिक्षा, साहित्य और सेवा की यात्रा शुरू हुई जो आज भी अनवरत जारी है !
डॉ पठानिया ने अलग अलग पाँच विषयों पर एम ए की डिग्री हासिल की और अर्थ शास्त्र में डॉक्टरेट की है । साहित्यक रचना “ योगी की अमर कथा “ के लिएउन्हें विक्रमशिला विद्यापीठ द्वारा मानद विद्या वाचस्पति (डॉक्टर) की उपाधि से सम्मानित किया गया है
बचपन से ही मन में उठते प्रश्नों का उत्तर प्राप्त करने के लिए जब उनके कदम बाहर निकले तो उस सफ़र से मिले अनुभवों को पुस्तक रूप में लाने का प्रयास किया और अपनी पहली रचना “प्रार्थना शतकम्” वर्ष 2017 में प्रकाशित की ।परंतु डॉ पठानिया को लेखक के रूप में पहचान सिद्ध योगी बाबा बालक नाथ जी के जीवन पर आधारित पुस्तक “योगी की अमर कथा“ से हुई !
इस पुस्तक के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि उनके घर में बाबा बालक नाथ जी और बाबा भर्तृहरि नाथ जी का मंदिर है जिसकी सेवा उनके पूर्वजों द्वारा लगभग 300 वर्ष से की जाती रही है ! उस सेवा भाव के कारण उत्पन्न जिज्ञासा से बाबा बालक नाथ और भर्तृहरि नाथ जी के जीवन में हुई घटनाओं को विस्तार से जानने के लिए उन्होंने सभी ज्योतिर्लिंगीं और बहुत सारे शक्तिपीठों की लगभग 16 वर्ष लगातार यात्राए की और 2021 में विद्या मंदिर स्कूल के अध्यक्ष अनुराग सूद जी के प्रेरित करने पर यह पुस्तक लिखी ।
पूछे जाने पर उन्होंने आगे बताया कि अपनी लेखनी का श्रेय वह अपने स्व मामा रत्न सिंह जी राजपूत और अपने स्वर्गीय पिता कैप्टेन मोहिन्दर सिंह जी को देते हैं !
ज्योतिष के विषय पर पूछे जाने पर डॉ पठानिया बोले कि ज्योतिष भारतीय दर्शन और वेद परम्परा का एक अभिन्न अँग रहा है पर आज कल कुछ लोग इसका दुरुपयोग कर अपनी हित पूर्ति कर रहे हैं जो कि चिंता का विषय है! उन्होंने कहा कि इस सनातन विद्या का प्रयोग जीवन को सकारात्मक बनाने के किए होना चाहिए ! विभिन्न संस्थाओं में पदासीन हो सक्रिय भूमिका निभाने वाले डॉ हर्षविन्दर ने अपने संदेश में कहा कि हमे दूसरों के दुख - दर्द को महसूस कर उसे कम करने का प्रयास करते रहना होगा ।यही हमारी शिक्षा का और हमारे सभी धर्मों का सार तत्व है !
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें