#अरोड़ा_की_मूल_उत्पत्ति/#उद्गम_स्थल :
अरोड़ा वंश कुल देवी है माता सती का जहाँ माता सिर गिरा था पहली शक्ति पीठ हिंगलाज माता।
*30 मई - महाराजा अरूट जी महाराज जयन्ती*
*भगवान श्री राम का वंशज अरोड़ा समाज*
*अरोड़ा समाज के इतिहास के अनुपम प्रवर्तक अरूट जी महाराज का सन्देश था कि अपनी उन्नति के लिये प्रयत्न करने के साथ समाज की प्रगति में प्रयत्नशील रहना हर सभ्य नागरिक का सामाजिक उत्तरदायित्व हैं ।*
दिनांक* 30-05-2021 को श्री महाराजा अरूट जी महाराज की जयन्ती पर सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई। जय श्री राम
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अरोड़ा जाति का उद्गम कहां हुआ इस विषय पर प्रकाश डालते हैं, त्रेतायुग में महान प्रतापी सम्राट अरूट जी हुए थे वीर, साहसी और बुद्धिमान भी थे, यही वीर पुरुष अरोड़वंश के प्रथम प्रवर्तक माने जाते हैं, त्रेतायुग में भगवान परशुराम चरित्र हीन, विलासी और दुराचारी क्षत्रियों राजाओं का अपने फरसा से समूल नष्ट करने के लिए भ्रमण कर रहे थे रास्ते में शस्त्रधारी शूरवीर मिला, उन्होंने शस्त्रधारी नवयुवक से उसका परिचय पूछा
उस वीर पुरुष ने अपना परिचय इस प्रकार दिया मेरा नाम अरूट है, सूर्यवंशी क्षत्रिय, गोत्र कश्यप, गऊ और ब्राह्मणों की रक्षा करना ही मेरा धर्म है
परशुराम उस क्षत्री वीर पुरुष से बहुत प्रभावित हुए वे ऐसे वीर क्षत्रिय राजाओं की तलाश कर रहे थे जो ब्राह्मणों का मान सम्मान और गऊओं की रक्षा के साथ साथ धर्म की भी स्थापना कर सके, वीरता से राजकाज करे और प्रजा में नई चेतना और आत्मविश्वास पैदा करे आर्यावर्त का धूमिल ग़ौरव पुनः बहाल करे उन्हें युवक अरूट में वे सभी गुण दिखाई दिए जैसा वे वीर क्षत्रिय राजा की तलाश कर रहे थे, परशुराम अरूट की निडरता एवं विनम्रता से बहुत प्रभावित हुए परशुराम ने आज्ञा दी, तुम वीर हो, निडर भी हो, इस समय सिंधु नदी के आसपास का क्षेत्र अधर्म और अत्याचार का शिकार है वहां के राजा को मैंने उसकी करनी का दण्ड दे दिया है तुम वहां जाकर अपना राज्य स्थापित करो, प्रजा का लालन-पालन करो तथा राज्य की सीमाओं को बढ़ाकर उन्हें सुदृढ़ बनाओं
महाराज अरूट ने इस आज्ञा को शिरोधार्य किया और अपना लक्ष्य निर्धारित किया आप ही महाराज अरूट *अरोड़वंश* के प्रथम सम्राट हुए
*महाराजा अरूट का राज्य अरूट कोट:*
महाराज अरूट अपने परिवार जनों तथा संबंधियों और मित्रों को साथ लेकर सिंधु प्रदेश की ओर बढ़े मार्ग में आई बाधाओं को पार करते हुए दुराचारियों का समूल नाश करते हुए एक ऊंचे टीले पर मजबूत क़िले का निर्माण किया और उस क़िले का नाम अरूट कोट रखा उस काल में राजा महाराजा दुर्गों से ही राज्य कार्यों का संचालन किया करते थे *महाराजा अरूट* ने परशुरामजी के आदेशानुसार धर्म परायण राज्य स्थापित किया दुखी प्रजा जनों के लिए अन्न-धन की व्यवस्था की चारों ओर शक्तिशाली राज्य स्थापित किया प्रजा में सुख-शांति और समृद्धि लौट आईं, अरूट कोट कुछ समय बाद अरोड़ कोट के नाम से प्रसिद्ध हुआ, कोट शब्द क़िले के लिए प्रयुक्त होता है महाराज अरूट ही अरोड़वंश के प्रथम सम्राट थे इनके वंशज ही अरोड़वंशी कहलाएं।
अरोड़ कोट के साथ अरोड़ नगरी बसाई गई यह नगरी खेती व्यापार और उद्योग में अद्वितीय थी यह नगरी सिंधु नदी की दो धाराओं के आंचल में स्थित होने के कारण पूरे क्षेत्र की भूमि उपजाऊ और धन-धान्य से समृद्ध थी और पूरा इलाका शांति प्रिय हो गया यद्यपि क़िला पथरीले टीले पर था जिससे नगरी नदी की बाढ़ और तूफान से सुरक्षित थी सिन्धु वासियों ने महाराज अरूट की अधीनता स्वीकार कर ली।
अरूट स्वयं सूर्यवंशी क्षत्रिय थे नगरी में राम राज्य की तरह शासन व्यवस्था थी प्रजा अपने महाराजा से खुश और संतुष्ट थी अतः सिंधु वासी भी अपने आप को अरोड़वंशी कहलाने में गर्व महसूस करते थे।
*अरोड़ राज्य का वैभव:*
अरोड़ा राज्य व्यापारिक और औद्योगिक दृष्टि से वैभव शाली था, अरोड़ कोट की नगरीय व्यवस्था नियोजित थी मकान पक्के हवादार थे स्नानागार सुंदर थे पक्की चौड़ी सड़कें, पानी निकासी की समुचित व्यवस्था थी, भवन ऊंचे और विशाल थे फलों के बाग़ों की भरमार थी, व्यापारिक केंद्र अलग से था, सूती वस्त्र ऊनी कपड़ों तथा सूखे मेवे और सभी प्रकार की वस्तुओं का व्यापारिक केंद्र था अरोड़ा देश का व्यापार काबुल, कंधार, कश्मीर तथा कच्छ की खाड़ी तक होता था अरोड़ा साम्राज्य प्रसिद्धि के शिखर पर था विदेशो से समुद्र के रास्ते व्यापार होता था हड़प्पा की खुदाई में सिंधु संस्कृति के प्रमाण मिले हैं।
*अरोड़ा राज्य विस्तार:*
महाराज अरूट ने अपना राज्य सिन्धु नदी के नीचे महरान तक
पूर्व में कश्मीर तक पश्चिम में मकरान तक समुद्र तट की ओर बन्दर बबील तक उत्तर की ओर कंधार और सुलेमान तक दक्षिण की ओर सूरत चन्दरदेव तक फैला हुआ था।
अरोड़ राज्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए चार प्रांतों में बांटा गया था।
इन चार प्रान्तों में पहला ब्रह्मनाद के क़िले के अधीन बबीला लोहाना दूसरा प्रांत सीलवान मकरान तीसरा प्रांत तलवाड़ा बवछोड़ एवं चौथा प्रांत मुल्तान सक्सर कश्मीर तक फैला हुआ था प्रत्येक सूबे का एक सूबेदार होता था जो अरोड़मुखी कहलाता था केंद्रीय शासन अरोट कोट से संचालित होता था राज्य के वंशज ही *राजा अरोड़ा* कहलाते थे समय परिवर्तन के साथ ही अरोड़ा या अरोड़े कहलाने लगे इतिहासकार कनिंघम ने अरोड़वंश को मान्यता दी है।
महाराजा अरूट की कई पीढ़ियों ने शताब्दियों तक कुशलता पूर्वक राज्य किया स्वयं महाराज अरूट जी ने हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार ही राम राज्य की स्थापना की, राम राज्य की तरह जनता जनार्दन प्रसन्न और संतुष्ट थी, सिंधु घाटी से चली यह संस्कृति और सभ्यता कालांतर तक आर्यावर्त (अखंड भारत)का मार्गदर्शन करती रही
सृष्टि का नियम है उत्थान के बाद पतन और पतन के बाद फिर से उत्थान, लोग अंध धर्म परायण के चलते मित्र-शत्रु की पहचान भूल गए अतः आपसी टकराव और मतभेद के कारण अरोड़ कोट राज्य का पतन शनै: शनै: शुरू हो गया।
ईसा की छठी शताब्दी में साहसी राय ने ब्राह्मण वंश का राज्य स्थापित किया इनकी राजधानी अलोर, अरोड़ कोट ही रही राजा बौद्ध मतावलंबी था इसका मंत्री चच था, राजा के निधन पर अवसरवादी चच ने अरोड़वंश का राज्य स्वयं सम्भाल लिया और राजा बन गया।
राजा चच के राज्य में अरोड़ो पर खूब अत्याचार हुए उसके निधन के बाद उसका भाई चन्दू ने सात साल राज्य किया वह बौद्ध धर्म का अनुयायी था
*वीरमानु की वीरता:*
644 ईस्वी में महाराज दाहर ने राज्य सम्भाला, दाहर अरोड़वंशी नहीं थे परन्तु अरोड़ा राज्य के समर्थक थे, दाहर देशभक्त और बहादुर राजा था।
तत्कालीन चीनी यात्री ह्वेनसांग ने राजा दाहिर की खूब प्रशंसा की है उसने दाहर को शूरवीर बताया और उसके राज्य की खुशहाली की दिल खोलकर प्रशंसा की है, उधर अरब वालों ने राजा दाहर के साम्राज्य के राज्य की समृद्धि सुनी तो बगदाद के खलीफा ने सेनापति वज़ीर हैज़ाज और अब्दुल्ला को भेजा, महाराज दाहर के पुत्र जय शाह और अरोड़वंशी वीरमानू ने करारी हार दी, महाराज दाहर ने वीरमानू को सम्मानित किया क्योंकि वीरमानु ने अब्दुल्ला को देवल का सेनापति नियुक्त किया जिसने अरोड़ राज्य की रक्षा की, देवल के पूर्व सूबेदार ज्ञानबुद्ध के हृदय में जलन और पीड़ा हुई, वह अपनी कायरता के कारण विफलता का बदला लेने के लिए तुल गया
दिल के फफोले जल उठे दिल के दाग़ से
घर को आग लग गई घर के चिराग से
ज्ञानबुद्ध ने बगदाद के खलीफा के पास पुनः हमले का निमंत्रण भेजा, बदला लेने के लिए वज़ीर हैज़ाज बहुत बेकरार और खुश हुआ।
अब मुहम्मद बिन क़ासिम के नेतृत्व में अरबों ने चढ़ाई कर दी, वीर मानु वीरता से लड़ा परन्तु विशाल सेना और विश्वासघाती ज्ञानबुद्ध के कारण मुहम्मद बिन क़ासिम ने अरोड़ कोट पर राज्य स्थापित कर लिया युवराज जयशाह घायल हो गए लेकिन बहादुर वीरमानु ने राजा को घोड़े पर बैठाकर काश्मीर ले गया, काश्मीर के राजा से वे सहायता लेकर पुनः युद्ध करना चाहते थे।
*राजा दाहर की पुत्रियों की वीरता:*
दाहर की दोनों पुत्रियां राजकुमारियां सूर्यदेवी एवं प्रमिला देवी वीरता से लड़ी परन्तु युद्ध में घायल हो गई कुछ लालची एवं विश्वासघाती लोगों ने दोनों राजकुमारियों को मोहम्मद बिन क़ासिम के हवाले कर दिया उसने लूट के सामान के साथ उन दोनों राजकुमारियों को भी बगदाद के खलीफा के पास भेंट स्वरूप भेज दिया।
खलीफा बहुत प्रसन्न हुआ और दोनों सुंदरियों पर मोहित हो गया और महल में आदर पूर्वक रखा लेकिन दोनों राजकुमारियों के मन में पिता दाहर और अरोड़ा राज्य के अपमान का बदला लेने की आग सुलग रही थी इसके लिए सर्वस न्यौछावर करने को आतुर थीं, राजकुमारी सुर्य देवी ने दर्द भरी कहानी खलीफा को सुनाई कि मोहम्मद बिन क़ासिम ने उसकी अस्मत लूट ली है और इस तरह आपके (खलीफा) योग्य नहीं रखा है।
खलीफा ने आदेश दिया कि मुहम्मद बिन कासिम को पशु की चमड़ी में बंद कर, सीलकर मेरे सामने लाया जाएं, उसे खलीफा के सामने लाया गया लेकिन दम घुटने से वह मर चुका था, खलीफा ने कहा देखो तुम्हारे अपराधी के साथ हमने कैसा सलूक किया है इसकी औलाद भी कभी ऐसा कदम नहीं उठायेगी।
मुहम्मद बिन कासिम को मरा देख कर दोनों राजकुमारियां ज़ोर से हंसी और ललकारा कि हमनें अपने पिता और अरोड़ राज्य के घाती से बदला ले लिया है, हमने झूठी कहानी गढ़ी थी, इससे पहले कि खलीफा उनके बदन को छूता उन दोनों वीरांगनाओं ने हंसते हंसते एक दूसरे के पेट में कटार घोंप कर मृत्यु का आलिंगन कर वीर गति को प्राप्त कर अरोड़ राज्य के पतन और पिता दाहर का बदला ले लिया, जब जब इतिहास देश के बलिदानियों को याद करेगा राजा दाहर की दोनों पुत्रियों को नमन करता रहेगा।
*समृद्ध राज्य अरोड़ कोट को लूटेरों द्वारा लूटना:-*
अरोड़ा राज्य को यवनों ने भी खूब लूटा (वहां धन-धान्य की कोई कमी नहीं थी) भूखे भेड़ियों ने राज्य की ईंट से ईंट बजा दी, महल, दरबार और बाजार खण्डहर बन गए और टीलों में परिवर्तित हो गए। अरोड़ा राज्य की सुंदर अनुपम राजधानी अरोड़ कोट एक खण्डहर में आज भी *रोड़ी (पाकिस्तान)* में अपनी गाथा सुना रहा है।
अरोड़वंशियों की राजधानी अरोड़ कोट की भूली बिसरी दास्तां जिन पर अरोड़वंशियों को आज भी नाज़ है।
*उत्तराधी, दखने और डाहरे:-*
ऋषि कश्यप और महाराजा अरूट के वंशज, सूर्यवंशी अरोड़ो ने बड़ी वीरता से सिंध देश पर आक्रमणकारियों का भारतीय संस्कृति और मान मर्यादा के साथ डटकर मुकाबला किया।
परन्तु अरब जालिम, लालची लोभी और अधर्मी, धन के भूखे और मजहब के नाम पर लूट-खसोट के साथ महिलाओं की अस्मिता के साथ खिलवाड़, बूढ़े-बच्चों पर जघन्य अपराध के कारण तथा अपने सनातन हिन्दू धर्म की रक्षार्थ सिंध के अरोड़ो को देश के विभिन्न क्षेत्रों में पलायन के कारण आबादी का कुछ हिस्सा उत्तर दिशा की ओर गया, जो उत्तर दिशा की ओर गया, *उत्तराधी* कहलाए, जो दक्षिण की ओर गए *दखने* कहलाए, पश्चिम की ओर जाने वाले *डाहरे*
इसी प्रकार जब पंजाब में गड़बड़ी हुई तो लाहौर (लव पुर) से पलायन कर पुनः सिंध, कच्छ गुजरात, काठियावाड़ के विस्थापित *लोहाने* कहलाए।
इन महापुरुषों ने अपने मान सम्मान और धर्म तथा कर्म की रक्षार्थ अनेकों बार कष्ट सहन किए।
विधर्मी, मजहबी उन्मादी अरबों का एक ही नारा था, मुसलमान बनो अथवा तलवार से सिर कटवाओ, अधिकांश अरोड़वंशी देश, धर्म की रक्षार्थ शहीद हो गए अथवा पलायन को बाध्य हुए और विभिन्न स्थानों पर विस्थापित होने के बावजूद अपनी मेहनत,लग्न और पुरूषार्थ से जिन जिन क्षेत्रों में गए वहां उसे फिर से भारत को सोने की चिड़िया बनाने में खून पसीना एक कर अपनी जाति, कुल की परम्पराओं और धर्म की रक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
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